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नज़्म
कोई मेरे सिवा उस का निशाँ पा ही नहीं सकता
कोई उस बारगाह-ए-नाज़ तक जा ही नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वक़्त कि जिस में उस से प्यार की बातें करनी थीं
वक़्त कि जिस में उस के जिस्म से साँसें भरनी थीं
सय्यद काशिफ़ रज़ा
नज़्म
ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर